बच्चों को शिकार बना रहा डायबिटीज
सेहतराग टीम
डायबिटीज यानी मधुमेह का फैलाव भारत में इतनी तेजी से हो रहा है कि देश को दुनिया की मुधमेह राजधानी बुलाया जाने लगा है। इसमें भी टाइप 2 डायबिटीज का फैलाव तो भयंकर तरीके से होने लगा है। आज की तारीख में भारत में सात करोड़ से अधिक लोग टाइप 2 डायबिटीज के मरीज बताए जा रहे हैं। देश के शहरी आबादी में डायबिटीज प्रभावितों की संख्या करीब 10 फीसदी जबकि ग्रामीण आबादी में डायबिटीज प्रभावितों की संख्या करीब 3 फीसदी है।
खास बात ये है कि ये भ्रम अब टूट रहा है कि टाइप 2 मधुमेह सिर्फ वयस्कों को चपेट में लेता है। ये बीमारी अब बच्चों में भी पैर पसार रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार 25 वर्ष से कम आयु के हर 4 यानी में से 1 यानी 25 प्रतिशत भारतीय अडल्ट-ऑनसेट टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित है। भारत में लगभग 97 हजार बच्चे टाइप-1 डायबिटीज का शिकार हैं जो एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देती है जिससे बच्चों को जीवित रहने के लिए आजीवन इंसुलिन इंजेक्शन पर निर्भर रहना पड़ता है।
बच्चों को क्यों चपेट में ले रहा है मधुमेह
देश में मधुमेह चिकित्सा के सबसे विश्वसनीय केंद्रों में से एक फोर्टिस-सी डॉक के चेयरमैन और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मेडिसीन विभाग के पूर्व प्रमुख डॉक्टर अनूप मिश्रा के अनुसार मधुमेह बच्चों को भी शिकार बना रहा है और उनके पास ऐसे मरीज अब नियमित रूप से आ रहे हैं।
डॉक्टर मिश्रा के अनुसार आलसीपना, जंक फूड, मैदानी खेलों का अभाव, इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स की आदत जैसे कारक बच्चों को ओवरवेट बनाने के साथ-साथ कम उम्र में ही मधुमेह की ओर धकेल देते हैं। अधिकांश घरों में माता-पिता दोनों कमाऊ होते हैं, पैसे की कमी नहीं होती और घर में खाना बनाने का वक्त दोनों में से किसी के पास नहीं होता। ऐसे में बाहर का खाना नियमित रूप से खाया जाता है। जाहिर सी बात है कि इस खाने से आप सेहत तो नहीं ही पा सकते। मोबाइल और लैपटॉप उन्हें शारीरिक रूप से नाकारा बना देते हैं। अब कई स्कूलों में बच्चों का मोबाइल इस्तेमाल प्रतिबंधित कर दिया गया है जो कि एक अच्छी पहल है।
बच्चों में ये हैं मधुमेह के संकेत
बार-बार पेट में दर्द
उल्टी
बार-बार सिरदर्द
अस्वाभाविक थकान
बार-बार पेशाब आना
सावधानियां
इलाज से बेहतर होता है बचाव करना। अपने बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें। जंक फूड के बजाय घर का बना खाना खिलाएं और खाने में फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं। एक बात का ध्यान रखें कि बढ़ती उम्र के बच्चों को वयस्क व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है और इसके लिए उन्हें सामान्य व्यक्ति के मुकाबले अधिक वसा की जरूरत पड़ती है। मगर ये वसा इतनी भी न हो कि बच्चे का वजन उसके कारण अस्वाभाविक रूप से बढ़ने लगे। इसलिए बच्चे के खाने में वसा का संतुलित रूप से इस्तेमाल करें। इसी प्रकार ब्रेड का इस्तेमाल कम से कम करें और अगर कर भी रहे हैं तो सफेद की जगह आटे से बने ब्राउन ब्रेड का इस्तेमाल करें। खाने में अन्य पोषक तत्वों को भी जगह दें।
खास परहेज
ज्यादा चॉकलेट एवं कैंडीज का सेवन हानिकारक है। इसी प्रकार आइसक्रीम में बहुत अधिक फैट होता है। शीतल पेय पदार्थ तो सिर्फ चीनी के भंडार हैं इसलिए इन सभी से बच्चों को दूर ही रखें।
जीवनशैली बदलें
ये समझ लें कि बच्चों को टाइप 2 मधुमेह से बचाना बहुत हद तक माता-पिता के हाथ में होता है। बच्चे की सेहत के लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है ये वही उसे बेहतर तरीके से समझा सकते हैं। कई बार होता ये है कि माता-पिता खुद अपनी कारोबारी व्यवस्तताओं के कारण शारीरिक गतिविधियां नहीं कर पाते और बच्चे पर भी ध्यान नहीं दे पाते। ऐसे में बच्चा भी शारीरिक गतिविधियां नहीं करता। इस स्थिति तो जितनी जल्दी बदल लें उतना अच्छा।
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